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00:00आप जानते हैं गेहरी सोच के लिए ग्यान के लिए
00:29और व्यावारिक दृष्टी कोण के लिए
00:31व्यक्ति की मानसिक्ता
00:33सामाजिक मुद्धो पर
00:35मूलभूत प्रश्णों को समझने की कोशिश करेंगे
00:38मैं हूँ आपके साथ अदिती
00:40और एक बार फिर स्थे बलकुम कहते हैं आचारे प्रशांची का
00:42आचारे जी जैसे की मैंने बताया
00:53हमारे दर्शक भी जानते हैं आपके मिलियन फॉलोवर्ज है
00:57सभी कहते हैं कि आपकी जो
01:00स्पिरिच्वल अंडिस्टानिंग है
01:02और स्पिरिच्वल लीडर उसको लेकर
01:04आपके अनुफवों से अगर हम समझने की कोशिश करें
01:07तो आप व्यक्ति की स्वतंतरता
01:09और उस्वतंतरता से जोड़ी
01:11जिम्मेदारी को आज मैं आपसे समझना चाहूंगी
01:14और सबसे इंपोर्टन उसका एक पॉइंट है
01:17फ्रीडिम अफ स्पीच
01:18आप थेटर से जुड़े रहे हैं
01:20अभी नहीं जानते हैं
01:21आप नहीं के महत्वकों जानते हैं
01:23आप डिजायर टू एक्सप्रेस को भी समझते हैं
01:26आपको क्या लगता है एक व्यक्ती जो है
01:28क्या हर वक्त अपनी हर सोच को हर विचार को व्यक्त करना चाहता है
01:35अगर चाहता है तो उसे कितना फ्रीडम मिलना चाहिए
01:38कितनी सुतंतरता होनी चाहिए
01:40किस पडेस्टल पे वो बोल रहा है
01:43उसको ध्यान में रखते हुए उसको कितनी जिम्मेदारी होनी जाहिए अपने शब्दों को लेकर
01:48देखिए सुतंतरता सबसे पहले एक भीतरी चीज होती है
01:56बाहर तो मैं वही बोलूँगा ना जो पहले मेरे भीतर है
02:01और बाहरी जब गुलामी होती है बंधन होते हैं तो वो ज्यादा आसानी से दिख जाते हैं
02:09किसी ने आपको ऐसे हथकड़ी लगा दिये किसी ने आपको कहीं पर जाने से रोक दिया है
02:14वो ज्यादा आसानी से दिख जाता है लेकिन जो भीतरी बंधन होते हैं
02:20जहां भीतरी आपको सोचने की ही अपनी और से आजादी सुन्दरता नहीं है
02:27या कुछ बातें आपने मान ही ली हैं, कुछ सीमाएं आपने अपने लिए तैही कर ली है
02:32और उस अब आपके भीतर डाला गया है, बाहर से वो पता नहीं चलता
02:35तो अभिव्यक्त तो जीवन का ऐसे समझिए कि रस ही है
02:45लेकिन अभिव्यक्त आप तभी कर पाएंगे, खुल करके जब आप भीतर से खुले हुए होंगे
02:55तो बाहरी सुतंतरता अच्छी चीज़ है पर उससे पहले भीतरी सुतंतरता चाहिए
03:01नहीं तो फिर हम जो बाहर बोलते हैं वो हमारे लिए भी अच्छा नहीं होता
03:06एक आदमी जो भीतरी तोर पर गुलाम है और जो पता भी नहीं कर पाया है
03:12कि वो भीतर कितनी रूड़ियों में, कितनी विचारधाराओं में, कितनी सीमाओं में जकडा हुआ है
03:19वो जब बाहर बोलता भी है
03:21तो वो अपने भीतर की फमझी है बेडियों की ही आवाज बाहर वालों को भी सुनाता है
03:28और ऐसे सुनाता है जैसे कोई बहुत उची चीज सुना रहा हो
03:30तो पहली चीज तो यही है कि हम अपने भीतर देखें
03:35और भीतरी तौर पर आजाद होने की, मुक्त होने की कोशिश करें।
03:39लेकर अब इसमें दूसरी चीज पर आते हैं, जो बड़ी रोचक है।
03:42और दूसरी चीज ये है कि भीतर तो कोई आखों से देख नहीं सकता और कानों से सुन नहीं सकता।
03:51बाहर की ही चीज़ें में दिखाई सुनाई देती हैं, भीतर क्या है पता कैसे चलेगा, और भीतर जो है वो पता नहीं चलेगा तो उसका सुधार कैसे होगा, डियागनोसिस के बिना उपचार, ट्रीटमेंट तो हो नहीं सकता ना।
04:04तो भीतर अगर गडबड भी है, भीतर अगर बीमारी भी है, बंधन भी है, तो उसका पता तभी चलता है जब किसी को आप बोलने दें, मैं किसी से बात कर रहा हूँ, वो अपने भीतर क्या लेकर बैठा है तभी तो पता चलेगा जब वो बिचारा पहले बोल पाए, अगर
04:34माने उसे स्वतंतरता मिल पाएगी, तो इस नाते ये जो अभीव्यक्त की स्वतंतरता है, ये बहुत बहुत कीमती हो जाती है, हमारा समविधान है उन्नीस्वा अनुच्छेद, उसमें जो स्वतंतरता हैं हैं, उसमें पहली ही है, राइट टु फ्रीडम अव स्पीच अन �
05:04तो इसको इतना कीमती माना गया है, कि सरवोच्छ ने आयले ने कहा है, कि ये जो है, राइट टु फ्रीडम अव स्पीच अन एक्स्पेशन, ये बाकी सब फ्रीडम्स का आधार है, मदर अफ अल अधर फ्रीडम्स है, और हम बात करते चलेंगे, तो मतलब अभी मैंने सुप
05:34करांतेकारी हुए हैं, जिन्होंने ये जो विचार और अभिव्यक्त की स्वतंतरता है, कहा है ये ऐसी चीज है जिसके लिए जान भी दी जा सकती है, 1994 आपने पढ़ी होगी, जोर्ज और्वल वाली, हम बार बार कहते हैं कि अभी और्वेलियन एक डिस्टोपियन दुनिया
06:04कि लोगों को वो कहने की स्वतंतरता नहीं है, जो वो सुनना नहीं चाहते हैं, आपको पता है, गांधी जी ने भी यंग इंडिया में कुछ ऐसा लिख दिया था, कि उन पर मान हाने का मुकदमा चला था, छे साल की सजा होई थी, हालंकि उससे पहले ही, उनको बाहर निकाल
06:34कोई उचाई, कोई आजादी नहीं मिलनी, आप गांधी जी को सुनोगे, तो आपका स्वतंतरता अंदोलन आगे बढ़ेगा, लेकिन आप कोई व्यर्थ का चुटकुला सुन रहे हो, इससे आपका क्या आगे बढ़ रहा है, कुछ आगे नहीं बढ़ रहा है, और मैं चु�
07:04कि एक जगह पर गांवाले बोले कि इतनी गर्मी पढ़ रही है, कि यह जो नदी थी या नहर थी बोले, इसका पानी तक गरम हो जाता है, तो राजी उगांधी इन मामलों में उस वक्त तक तक तक तक तक तक तक तक थोड़े अनाड़ी थे, उन्होंने क्या दिया, अपने �
07:34लोगों को हसा रहे हैं, पर हसा इस तरीके से रहे हैं कि हसने हसने में लोग कुछ सीख रहे हैं, तो हसी बहुत अच्छी बात है, पर एक हसाना यह होता है कि उसको मैं और गंदा गर के हसा दूँगा, कोई सस्ती चीज दे दी, हम होते ही भीतर से ऐसे हैं, सस्ती चीज के हम
08:04कि उससे सुनने वाला भी कुछ लाव पा रहा है
08:07तो सराहने वाले भी बहुत हैं
08:09तो बताने वाला जो है वो अपना कॉंटेंट उसी के हिसाब से तयार करता है
08:14अब बात यहां पर ही आती है कि हमें कितना बोलना चाहिए
08:18और जो हम बोल रहे हैं उसको लेकर क्या हम जिम्मेदार है
08:22जिम्मेदारी कहां पर पिक्चर में आती है
08:24देखिए पहली जिम्मेदारी तो हर इनसान की हर विवस्था की हर सरकार की सत्य के प्रति होती है
08:30जिम्मेदारी मेरी ये नहीं है कि आपको अच्छा लग रहा है कि बुरा लग रहा है
08:35जिम्मेदारी मेरी ये है कि मैं सच के साथ खड़ा हूँ कि नहीं खड़ा हूँ
08:38और ओडियन्स पहले नहीं आती
08:40पहले आता है वो व्यक्ति जो ओडियन्स इकठा करता है
08:43मैं अगर अंधविश्वास फैला रहा हूं
08:46तो मैं वैसी ओडियन्स अपने आसपा से कठी कर लूँगा
08:48मैं कोई सस्ती समगरी सबको परोसर आँ
08:51जो आसानी से लोगप्री हो सकती है
08:53तो मैं वैसी ओडियन्स अपने आसपा से कठी कर लूँगा
08:55और अगर मैं खड़ा हो करके कोई दमदार बात कर रहा हूं
09:00वो सही हो सकती है गलत हो सकती है
09:02पर वो मेरी conscience है कि मुझे सही लग रही गलत अक्रवी है
09:04किसी दूसरे पेमाने पर या किसी absolute scale पर
09:08आप कह सकते हो कि आप जो बात कह रहे हो अभी उसमें खोट है बिलकुल है लेकिन वो व्यक्ति कह रहा है कि नहीं मुझे अभी यही ठीक लगता है हो सकता है आगे चल करके मैं बहतर समझू मेरे विचार बतले हो अलग बात है तो वहाँ पर एक तीसरा आदमी है जो कह रहा है
09:38कि आजकल मैं ओडियंस को देखता हूं उसका इस तरीके करवाईया है तो मैं भी ओडियंस के पीछे पीछे चल दूँगा जो अगर आप यूट्यूब के लोगों की बात कर रहे हैं तो जो एक अच्छा कॉंटेंट क्रियेटर होगा न वो अपनी ओडियंस के पीछे नहीं
10:08और मनरंजन तो दूँगा ही दूँगा क्योंकि मनरंजन की बिना तो तुम सुनोगे ही नहीं एक मेरे खाल नीचे का वक्तव भी था कि लोगों से अगर सच बोलना है तो उन्हें हसा हसा के बोलना नहीं तो यह भाग जाएंगे
10:23उन्ही शायद वक्तव है कि भीड जो होती है उससे अगर उसके जूट चीनने है तो सहला सहला के चीनना क्योंकि हम जूट के प्राणी है जूट हमें बहुत प्यारा होता है तो जब सच हमारे सामने लाया जाता है तो हमें बुरा ही लगता है तो तब तो और ज़रूरी हो �
10:53अच्छा हो सकता है, आप उसको इसलिए फॉलो करें, क्योंकि आप देखते हैं कि बहुत लोग उसे फॉलो कर रहे हैं, और वो आपकी क्यूरियोसिटी को और बढ़ाता है, आप और उसे समझना चाहते हैं, पर इन दो प्रॉसेस कहीं न कहीं आप इंफ्लूएंस हो जाते हैं
11:23को इंफ्लूएंस तो करेगा ही, वहाँ पर फिर जो महत तो है वो शुरू होता है, सेल्फ नॉलेज का, कि मुझे ये पता चले कि मैं इंफ्लूएंस हो रहा हूं और ये इंफ्लूएंस मेरे साथ क्या कर रहा है, तो दो आखें हैं जो स्क्रीन को देख रही है, और एक आख
11:53स्क्रीन पर ही ऐसा भी कुछ हो सकता है, जो आपके भीतर घुस करके आपकी गुलामी से लड़े, पर वो कम होगा, रेर होगा, क्यों रेर होगा, क्यों कि वैसे लोग ही कम होते हैं, ऐसे लोग ही कम हैं, जो आपको आजाद कराना चाहें, ज्यादातर लोगों का स्वार्थ
12:23कम होते हैं जो सच मुझ आप से प्रेम करते हो और चाहते हो कि आप आजाद हो जाओ भीतर से और फिर बाहर से भी ठीक उसी तरीके से इंटरनेट, सोशल मीडिया और यूट्यूब बगएरा की दुनिया में भी ऐसे लोग कम होते हैं जो आपके सामने बात इसलिए रखते हैं
12:53पर फिर प्रेम आजाता है बीच में प्रेम कहता है देखना चाहे ना सुनना चाहे तुम प्यार तो तुमको है ना अपनी जिम्मेदारी निभाओ अपनी जिम्मेदारी शब्द का इस्तेमाल बिल्कुल शुरू में करा था तो ये जिम्मेदारी होती है कि जो मुझे मिला ह
13:23लेकर के बैठे हूँ और चाहे आप एक content creator हो camera लेकर बैठे हूँ आपको यह कहना पड़ेगा कि पहले मैं खुद तो वो पालू जिससे कि मेरे अपने बंधन छूटे मेरा अपना अंधेरा छटे मैं वो पालू और फिर मैं समय माटू यही आधारभूत बात है हम digital era की तो बा
13:53कुछ भी देख सकें चूस कर सकें तब आपको लगता है जीवन ज्यादा सरल था या आज जब इतना exposure है तो क्या हम उसके माध्यम से कुछ सीख पा रहे हैं और हम आगे बढ़े हैं देखिए निरभर व्यक्ते पर करता है आज आपको हर तरीके की सूचना उपलब्ध है पह
14:23लेकिन जब बहुत कुछ उपलब्ध हो जाए तो अवसर बढ़ जाते हैं माने opportunity बढ़ जाती है साथ ही साथ खत्रा माने threat भी बढ़ जाता है क्यों क्योंकि ज्यादा तर लोग कोई अच्छी चीज अपने लिए चाहते ही नहीं है हम अपने दुश्मन होते हैं दोस्त नही
14:53होते हैं गड़ बड़ चीज मिले तो कुछ खाने को भी उल्टा पुल्टा मिले पहले हां तुधर को ही जाता है फिर थोड़ा सा कहना पड़ता है कि यह चीज मेरे ठीक नहीं है ठीक है ना कोई भी चीज हो जो हमें सेंसेज से आती है तो आम तोर पे हमारी जन्मगत वृत
15:23जहर पर एक आस्पेक्ट इंफरमेशन भी तो हुआ मैं उस इंफरमेशन को ही जहर बोल रहा हूं तो वो उपलब्ध पचास साल पहले हमारे भी तर वो वृत थी वो टेंडेंसी पचास साल पहले भी थी समझ रहें बात को कि कहीं से किसी तरीके का कुछ नशा मिल जाए ठी
15:53मानिये सप्लाई के अभाव में हम अच्छे आदमी बने रह जाते थे आदमी तो मैं गडबड हूँ पर मुझे मेरे भोग की चीज मिली नहीं रही यह पंचास साल पहले की बात है मौके भी नहीं मिल रहे पैसे भी नहीं है सूचना भी नहीं इंफोरमिशन जो आपने कहा �
16:23नहीं मिलती, तो पचास साल पहले इतनी opportunities थी ही नहीं, थी ही नहीं, तो आदमी मजबूरी में अच्छा बना रह जाता था, बहुत अच्छे आदमी है मजबूरी में, अब आज वो मजबूरी नहीं है, आज आज आपके पास पैसा भी ज्यादा है, आज आपके पास सूचना �
16:53आपके पास ज्यादा हैं, तो वो जो हमारे भीतर पुराना जानवर है, जो कीचड मांगता है अपने लिए, नशा मांगता है, जहर मांगता है अपने लिए, आज उसके लिए मैदान खुल गया है, तो खुल करके अपने उपभोग की चीजें उठाता है, और अपने आपको �
17:23कोई seeking information is too ignorant, it's not a question of too much, तो मुझे अब misinformation बहुत सारी मिल रही है, क्योंके misinformation फैलाने वाले हैं बहुत, पहले information नहीं थी, तो कम से कम misinformation और disinformation भी तो नहीं थी, मुझे कोई बरबाद करने के लिए तो नहीं बैठा हुआ था, हाँ ठीक है, मुझे बहुत जादा ग्यान नहीं ह
17:53मेरे मन को कचरे से बरने को तो तयार नहीं बैठा हुआ था, कि आप बस फोन जेब में लेकर चल रहे हूँ, आपके जेब में ही कचरा डाले दे रहा है, आपकी टिवी स्क्रीन से लगाता रहा आपकी ऊपर कचरा फेका जा रहा है, पहले कम से कम यह तो नहीं होता था था �
18:23अपने लिए सिर्फ नशा और कच्रा खोज रहा हूं तो मैं इन्फॉर्मिशन को अपने लिए घातक बना लूँगा ना अब अब ये तो पानी है ना ये तो पानी है पानी तो घातक नहीं होता और ये माईक है माईक भी अपने आप में घातक नहीं पर मैं ये पानी उठा ग
18:53तो जो भी संसाधन, जो भी रिसोर्स सुविधा देंगे, वो उसका गड़बढ ही इस्तेमाल करेगा,
18:58नुकलियर पावर का इस्तेमाल हो सकता है, यहां जो बिजली है, इसके लिए भी,
19:02और न्युक्लिर पार का इस्तेमाल हो सकता है
19:04हिरोशिमा नागासाकी के लिए भी
19:05हम जब गड़बढ हैं
19:07हमारे हाथ में जो भी पावर आता है
19:08मुसे गड़बढ इस्तेमाल करते हैं
19:10इसलिए अध्यात में जरूरी है
19:11ताकि हम ठीक हो पाएं
19:13हम ठीक नहीं हैं
19:14तो इसारी तरक्की आत्मगातक है
19:16अगर भीतरी तरक्की नहीं हो रही
19:18तो बाहरी तरक्की और ज्यादा नुकसान कर दे देती है
19:21तो इन नुट्षेल
19:23तो इन नुट्षेल
19:30एक व्यक्ति को किस तरह से रेगुलेटिड रहना चाहिए
19:34देखिए आत्म अनुशा
19:36अपने साथ रहना चाहिए
19:38ताकि वो उस तरह से इंफ्लूएंस ना हो
19:40कि उसके जीवन की कॉलिटी जो है वो खराब हो
19:43तेखिए जब मुझे साफ साफ पता चलता है
19:46कि मैं कौन हूँ
19:48दिखाई देने लगता है
19:49कहां मैं कमजोर पड़ रहा हूँ
19:52कहां मैं अपना ही नुकसान कर रहा हूँ
19:55और कैसे मैं बहतर हो सकता हूँ
19:57क्या जीवन में ला करके
19:58क्या जीवन से हटा करके
19:59तो फिर मैं दूसरों के लिए भी
20:02जिम्मेदार हो जाता हूँ अपने आप
20:03वो एक ओड़ी हुई जिम्मेदारी नहीan होती
20:05फिर मेरी हस्ती ही जिम्मेदार बन जाती है
20:08अब ये बताइए
20:09मुझे अगर सचमुछ लगता है
20:11अपने लिए
20:12कि फलानी चीज मैं खाऊं तो वो बड़ी बढ़ी आए
20:15चॉकलेट उधारन के लिए
20:16मैं खुद चॉकलेट का बहुत बड़ा प्रेमी हूँ
20:20तो मैं जिसको तोफ़ा भी देने जाओंगा
20:22तो बार-बार उसको क्या ही दूँगा
20:23चॉकलेट ही दूँगा
20:24बिना ये देखे कि चॉकलेट
20:26क्लाइमिट के लिए भी खराब है और सेहत के लिए भी खराब है
20:29तो पहले मुझे मेरे लिए क्या आच्छा ये तो पता चले
20:32और जैसे मुझे वो पता चलता है
20:34मैं सबके लिए अच्छा होने लग जाता हूँ
20:36हमारी पहली जिम्मेदारी आंतरिक है
20:38अपने प्रति है
20:39जो भी सुधार है, बदलाओ है, करांते है
20:42वो भीतर से ही शुरू होगा और फिर बाहर फैल जाता है

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